उपजे कई सवाल, कैसे पार पाएगी सरकार, इस रिपोर्ट में है जोशीमठ के भविष्य से जुड़ी जरूरी बातें

उपजे कई सवाल, कैसे पार पाएगी सरकार, इस रिपोर्ट में है जोशीमठ के भविष्य से जुड़ी जरूरी बातें
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जोशीमठ में भूधंसाव के बाद उपजे हालात से सरकार कैसे निपटेगी, इसका स्पष्ट रोडमैप अभी सामने आना बाकी है। ऐसे में लोगों के मन में जोशीमठ के भविष्य को लेकर तमाम तरह की शंकाएं और सवाल हैं, जिनका जवाब मिलने में अभी समय लगेगा। अमर उजाला ने इन अपनी इस रिपोर्ट में ऐसे ही कुछ सवालों की पड़ताल की है।

प्रभावित जोशीमठ के अस्तित्व का सवाल

भूधंसाव प्रभावित जोशीमठ का अस्तित्व रहेगा या मिट जाएगा, इस सवाल का जवाब तकनीकी संस्थाओं की रिपोर्ट सामने आने के बाद ही मिल पाएगा है। तब सरकार भी अनिर्णय की स्थिति में दिखाई दे रही है। बीते दिनों आनन फानन में शहर में ड्रेनेज प्लान लागू करने के लिए सरकार की ओर से डीपीआर बनवाई गई। लेकिन निविदाएं खुलने के बाद भी सरकार ने इसे फिलहाल स्थगित कर दिया।

शासन की ओर से इसके पीछे भी यही तर्क दिया गया कि अब इस इस विषय पर तकनीकी संस्थाओं की रिपोर्ट मिलने के बाद ही निर्णय लिया जाएगा। साफ है यदि यह रिपोर्ट प्रभावित जोशीमठ के पक्ष में नहीं आती है तो संभव है सरकार इस हिस्से में किसी भी प्रकार के निर्माण या पुनर्निर्माण पर पूरी तरह रोक लगा दे। ऐसे में यह रह रहे लोगों के पूर्ण विस्थापन का ही एकमात्र विकल्प बचता है।

एनटीपीसी पर सामने नहीं आई सरकार की स्पष्ट राय

जोशीमठ में स्थानीय स्तर पर एनटीपीसी का विरोध पहले से हो रहा है। भूधंसाव और जेपी कॉलोनी में फूटी पानी की धारा के बाद से इस विरोध को नए स्वर मिले हैं। लोग इसके लिए एनटीपीसी की सुरंग को जिम्मेदार बता रहे हैं। बीते दिनों राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच) की टीम ने इस पानी के नमूने भरे थे।

करीब सप्ताहभर बाद अपनी प्राथमिक रिपोर्ट भी सरकार को सौंप दी है। इसके बाद सरकार की ओर से बयान सामने आया कि जेपी कॉलोनी में निकल रहे पानी के नमूने एनटीपीसी की सुरंग के पानी से मेल नहीं खाते हैं। सरकार ने परियोजना के कार्यों पर रोक लगाई हुई, लेकिन अभी तक एनटीपीसी पर स्पष्ट राय सामने नहीं आई है। इसको लेकर भी लोगों के मन में कई तरह के सवाल हैं, जो देर सवेर सरकार को जनता को देने होंगे।

पुनर्वास को लेकर प्रभावितों और सरकार में एक राय नहीं

प्रभावित जोशीमठ का पुनर्वास सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। इस मुद्दे पर फिलहाल प्रभावित लोगों और सरकार के बीच एक राय नहीं बन पाई है। सरकार ने इसको लेकर एक अलग कमेटी भी बनाई है, जिसकी तीन बैठकें हो चुकी हैं। इसके बाद भी पुनर्वास, विस्थापन को लेकर कागजी लेखाजोखा ही तैयार नहीं हो पाया है। प्रभावित लोग भी एकमत नहीं हैं।

कुछ लोग जहां वन टाइम सेटलमेंट चाहते हैं, वहीं कुछ लोग किसी कीमत पर अपनी जड़ों को छोड़ना नहीं चाहते हैं। वह जोशीमठ के आसपास ही विस्थापन चाहते हैं। सरकार के चार स्थानों का चयन कर विस्थापन की बात कही है, लेकिन अंतिम रूप से इनमें भी अभी तक निर्णय नहीं लिया जा सका है। रविवार तक 863 दरार वाले भवनों को चिह्ति करते हुए 181 भवनों को पूरी तरह से असुरक्षित घोषित किया जा चुका था। जिस तरह से हालत उपजे हैं, उससे यह आंकड़ा और बढ़ सकता है। ऐसे में सरकार को मुआवजे और अन्यत्र विस्थापन के लिए एक बड़े पैकेज की दरकार है। जिसे तैयार कर केंद्र को भेजा जाना है। लेकिन यह पैकेज भी अभी तक नहीं बन पाया है।

धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व को बचाने की चुनौती

जोशीमठ को गेटवे ऑफ हिमालय भी कहा जाता है। आदि गुरु शंकराचार्य ने कठोर तप और ज्योर्तिमठ की स्थापना के लिए जोशीमठ को चुना था। कत्यूरी राजाओं की राजधानी रहा जोशीमठ आज भी धर्म और अध्यात्म के लिए जाना जाता है। संस्कृति और अध्यात्म के संवाहक रहे इस नगर के साथ इसकी धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताओं को बचाना भी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। यह एक शहरभर नहीं है, बल्कि लाखों हिंदुओं की आस्था का केंद्र भी है। बदरीनाथ जाने वाले तीर्थयात्री नृसिंह मंदिर में दर्शन करने के बाद ही आगे की यात्रा शुरू करते हैं। मान्यता है कि नृसिंह देवता के दर्शन के बाद ही बदरीनाथ धाम की यात्रा को पूरा माना जाता है।

पर्यटन कारोबार की नैया कैसे लगाएंगे पार

जोशीमठ में बीते वर्ष तक इस सीजन में सभी होटल फुल थे। शीतकालीन क्रीड़ा स्थल औली में भी इन दिनों पर्यटकों की भरमार रहती थी। लेकिन इस बार सब सूना पड़ा है। संभव है कि इसका असर आने वाले दिनों में बदरीनाथ यात्रा पर भी पड़े। ऐसे में पर्यटन कारोबार को बचाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। प्रभावितों के अन्यत्र विस्थापन, पुनर्वास से उनका वर्षों पुराना व्यवसाय, रोजगार चौपट हो जाएगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी इस पर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं। प्रभावित लोगों के स्वरोजगार के लिए वह अधिकारियों को योजना बनाने के निर्देश दे चुके हैं। इतना ही नहीं उन्हें कहना पड़ा कि जोशीमठ का 70 प्रतिशत हिस्सा पूर तरह से सुरक्षित है। लेकिन इससे पहले देश-दुनिया में संदेश चला गया कि जैसे पूरा जोशीमठ भूधंसाव के बाद गर्त में समा रहा है।