श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में नेत्रदान पखवाड़े की विशेष पहल

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देहरादून। श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के नेत्र रोग विभाग की ओर से नेत्रदान पखवाड़े के अन्तर्गत जनजागरूकता अभियान चलाया गया। 39 वें राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़े (25 अगस्त 2024 से 8 सितम्बर 2024) के अन्तर्गत पोस्टर प्रतियोगिता एवम् अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से जनजागरण की अलख जगाई गई। पोस्टर प्रतियोगिता में एसजीआरआर पटेल नगर, बोम्बे बाग, तालाब के छात्र-छात्राओं ने कैनवास पर प्रतिभा के रंगों को उकेरा। उत्कृष्ट प्रर्दशन करने वाले छात्र-छात्राओं को आई बैंक निदेशक एवम् नेत्र विभाग अध्यक्ष प्रो. डाॅ तरन्नुम शकील द्वारा पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया।

मंगलवार को श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के आॅडिटोरियम में कार्यक्रम का शुभारंभ डाॅ पुनीत ओहरी, उप प्राचार्य, श्री गुरु राम राय इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल एण्ड हैल्थ साइंसेज़, डाॅ गौरव रतूड़ी चिकित्सा अधीक्षक, श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल एवम् डाॅ अजय मैत्रेय, निदेशक ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्जवलित कर किया। श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के आॅडिटोरियम में नेत्रदाताओं के परिजनों को सम्मानित किया गया। नेत्र मरीजों की सेवा में उल्लेखनीय योगदान देेने वाले नर्सिंग स्टाफ को भी पुरस्कृत किया गया। श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल की नेत्र रोग विभाग की विभागाध्यक्ष व नेत्र बैंक की निदेशक प्रो. डाॅ तरन्नुम शकील ने जानकारी दी कि इन कार्यक्रमों का उद्देश्य आमजन के बीच नेत्रदान के संदेश को अधिक से अधिक लोगो तक पहुंचाना है।

श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल का नेत्रदान केन्द्र वर्ष 2012 से संचालित है और पुतली रोग से पीड़ित मरीजों की निस्वार्थ भाव से सेवा कर रहा है। श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के चेयरमैन श्रीमहंत देवेन्द्र दास जी महाराज की कृपा से वर्तमान में नेत्रदान बैंक की भी स्थापना हो चुकी है। आमजन को नेत्रदान बैंक की सेवाओं का लाभ प्राप्त हो रहा है। प्रो. डाॅ तरन्नुम शकील ने बताया कि इन कार्यक्रमो के माध्यम से श्री महंत इन्दिरेश आई बैंक समाज मेे प्रचलित नेत्र दान से जुडी भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास करता रहता है जिससे लोग अधिक से अधिक संख्या मे हमारे साथ जुडते रहे।
उन्होने बताया कि नेत्रदाता किसी भी उम्र, लिंग, धर्म व जाति का व्यक्ति हो सकता है। रक्तचाप और शुगर के मरीज भी नेत्रदाता बन सकते है। कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ निशीथ, डॉ भावना, डॉ किन्नआरी व्यास, डॉ राना उस्मानी का विशेष सहयोग रहा.

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